वयस्कों के लिए बच्चों की फिल्में देखना उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि बच्चों के लिए

दिल्ली। फिल्म क्लिंटन के निर्देशक पृथ्वीराज दास गुप्ता ने 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (इफ्फी) में अपनी फिल्म के बारे में बातचीत की। उन्होंने  कहा कि ‘‘पहले मैं बोर्डिंग स्कूल भेजने के लिए अपने माता-पिता से नाराज होता था, लेकिन अब मैं उनका आभारी हूं क्योंकि इससे मुझे अपनी फिल्म बनाने में मदद मिली।’’ उनकी फिल्म, क्लिंटन पश्चिम बंगाल के कालिम्पोंग में एक बोर्डिंग स्कूल में उनके खुद के अनुभवों से प्रेरित है।

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यह फिल्म 10 साल के क्लिंटन द्वारा प्रदर्शित दयालुता और साहस के बारे में है। फिल्म में जब वह स्कूल में दबंग बच्चों के सामने उन्हें धमकाने के लिए खड़ा हो जाता है, यह एक सबक है कि बच्चे दुनिया को कैसे देखते हैं और इसके बारे में किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं। क्लिंटन एक गैर-फीचर अंग्रेजी भाषा की फिल्म है जो 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में भारतीय पैनोरमा खंड का हिस्सा है। निर्देशक पृथ्वीराज दास गुप्ता ने कहा, ‘‘केवल मैं ही इस कहानी को बता सकता था, क्योंकि यह मेरी वास्तविकता है, और मैं इस कहानी में प्रामाणिकता ला सकता था।’’ 53वें भारतीय अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव में यह निर्देशक की दूसरी फिल्म थी, क्योंकि उनकी पहली फिल्म फिल्मोत्सव के पिछले संस्करण में भी दिखाई गई थी।

उन्होंने बताया कि किस प्रकार उन्होंने आशा की थी कि फिल्म न केवल स्कूलों में बल्कि उन स्थानों पर भी दिखाई जाएगी जहां वयस्क दर्शक इसे देख सकते हैं। उन्होंने आगे कहा, ‘‘वयस्क अक्सर बच्चों की समस्याओं को खारिज कर देते हैं, उन्हें समझ नहीं आता कि छोटी-छोटी चीजें बच्चों के लिए कितनी महत्वपूर्ण होती हैं और वे उन पर क्या प्रभाव छोड़ती हैं।’’ क्लिंटन के साथ उन्हें स्क्रीन पर बच्चों की मासूमियत प्रदर्शित करने की आशा है, और कालिम्पोंग में अपने बचपन की याद ताजा होने की भी उम्मीद है।

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